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| पुद्गल परावर्त छे, ए, केटलाक आचार्य कहे छे. आचा० बीजा आचार्थनो मत एवो छे के, द्रव्य, क्षेत्र, काळ, अने भाव, एम चार भेदे वर्णवे छे, अने आ प्रत्येक पण बादर, अने ।
आ प्रत्येक पण बादर, अनसूत्रम् सूक्ष्म एम वे भेदे अनुभवे छे, तथा द्रव्यथी बादर जे औदारिक, बैक्रिय, तैजस कार्मणना चतुष्टय (चोकडावडे) सर्व पुद्गलो ग्रहण ॥३३१॥8 करीने छोडी दीधा त्यारे थाय छे, अने सूक्ष्म छे, ते एक शरीरवडे बधा पुद्गलो स्पर्शवाला थाय त्यारे जाणवू.
॥३३१॥ (२) क्षेत्रथी बादर ज्यारे क्रम, अने उत्क्रमवडे मरतां जीवने बघा लोकाकाशना प्रदेश स्पर्शवाळा थाय त्यारे होय छे, अने & | सूक्ष्म तो त्यारेज जाणवो के एक विवक्षित आकाशखंडमां मरेलो, ज्यारे तेना प्रदेशोनी वृद्धि थाय त्यारे सर्वे लोकाकाशने व्याप्त थाय त्यारेज जाणबु.
(३) काळथी बादर ज्यारे उत्सर्पिणी, अने अवसर्पिणीना जेटला समयो छे, तेटला क्रम, अने उत्क्रमवडे मरण पामवावडे स्पर्श ४ करे छे त्यारे जाणवू; पण मूक्ष्म तो, उत्सर्पिणीना प्रथम समयथी आरंभीने क्रमवडे सर्व समयो मरनाराजीवे बधा स्पर्श कर्या होय त्यारे जाणवू (४) भावथी बादर ज्यारे अनुभागना बन्धना अध्यवसायना स्थानो क्रम अने उत्क्रम वडे मरेला जीवथी व्याप्त थाय त्यारे कहे छे. ___अनुभागना बन्धना अध्यवसायतुं प्रमाण प्रथम संयम स्थानना अवसरमां कही गया छीए अने मूक्ष्म तो जघन्य अनुभाव बंध| ना अध्यवसाय स्थानथी आरंभीने ज्यारे बधामां पण क्रमे करीने मरेलो थाय त्यारे जाणवू तेथी आ प्रमाणे कलंकी भावने पामेलो | अथवा बीजो कोइ जीव नीच गोत्रना उदयथी अनंत काळ सुधी पण तिर्यचमां रहे छे. मनुष्यमां पण नीच गोत्रनाज उदयथी तेवा
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