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अर्बुद प्रकरण
८६१ स्थानच्युत होकर विकास रोक देते हैं और कालान्तर में उनमें पुनः वृद्धि होने लगती है और उसके फलस्वरूप संयुक्तार्बुद उत्पन्न हो जाता है। इनकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में एक वाद यह भी प्रचलित है कि भ्रूण के उत्पादक कोशा कायभाग ( soma.) से प्रजन भाग (gonad ) की ओर प्रचलन कर देते हैं और प्रचलित कोशाओं में से कुछ अपने पथ से विचलित होकर प्रगल्भ प्रजनाङ्ग में श्रौणार्बुद उत्पन्न कर देता है।
भ्रौणाबंदोत्पत्ति प्रजननांगों में होती है और उसका मूलकारण प्रगल्भ (adult) या अविकसित ( undeveloped ) रोहिकोशा (germ cell ) हुआ करता है। __भ्रौणार्बुद सभी साधारण अर्बुद ( benign growths ) हुआ करते हैं तथा इनकी वृद्धि शरीर की साधारण श्रौणिक ऊतीय वृद्धि के समान ही होती है। आगे चलकर उनमें से कुछ में मारात्मक गुण उत्पन्न होता हुआ देखा जा सकता है । प्रजननाङ्गों में स्त्री की बीजग्रन्थि में जो भ्रौणार्बुद बनते हैं वे सदा साधारण या अदुष्ट तथा कोष्ठीय ( cystic ) होते हैं पर जो पुरुष की वृषणग्रन्थि में बनते हैं वे ठोस और मारात्मक देखे जा सकते हैं। ___ कहने का तात्पर्य यह है कि एक भ्रौणार्बुद में सभी प्रकार जटिलताएं पाई जा सकती हैं। वह एक पराश्रित भ्रूण ( parasitic foetus ) का रूप भी ले सकता है अथवा हृदय विरहित स्वाभाविक गर्भ से सम्बद्ध मूढ गर्भ के रूप में भी देखा जा सकता है। उसे एक संयुक्त पुंज के रूप में ऊर्ध्व हनु से संलग्न भी देखा जा सकता है और त्रिक प्रदेश में भी उसी प्रकार अभिलग्न पाया जा सकता है। उसका एक पुंजरूप शरीर में प्रजननांगों में भी बन सकता है। उसमें एक या दो से लेकर बहुत सी ऊतियाँ भी हो सकती हैं। कहीं यह कोष्ठीयरूप धारण कर लेता है और कहीं यह ठोस रहता है। माया के जिस प्रकार विविधरूप होते हैं उसी प्रकार भ्रौणार्बुद के भी हो सकते हैं । प्रजननांगों के भ्रौणार्बुद बहुरूपता के लिए सुप्रसिद्ध हैं । निचर्माभ कोष्ठ ( dermoid cyst ) के अन्दर जो बीजग्रन्थि में बनती है बाल, त्वचा, प्रस्वेदीय पदार्थ, दाँत, मस्तिष्क अवटुकादि अंग देखे जा सकते हैं । वृषण के श्रौणार्बुद में तरुणास्थि, पेशी, मस्तिष्क तथा मञ्जरिका ( choroid plexus ) तक पाया जा सकता है।
निचर्माभकोष्ठ ( Dermoid cysts )-बीजग्रन्थीय अर्बुदों का एक दशांश निचर्माभीय कोष्ठों द्वारा पूर्ण हुआ करता है । प्रजननकाल (procreation period) में ये उत्पन्न होते हैं। ये प्रायः अकेले ही बनते हैं कभी उसी पर बहुत ही कम एक बीजग्रन्थि में दो या दोनों ओर की बीजग्रन्थियों में एक एक भी ये देखे जा सकते हैं । कोष्ठ धीरे धीरे उत्पन्न होते हैं और वे साधारण या अदुष्ट होते हैं पर आगे चल कर उनका मारात्मक स्वरूप बीजकोशीय अधिच्छदार्बुद में भी बदल जा सकता है। एक निचर्मीय कोष्ठ का प्राचीर तान्तव ऊति के द्वारा बनकर तैयार होता है जिसके अन्दर शल्काधिच्छद का आस्तरण रहता है। उसके नीचे बड़ी बड़ी वसा ग्रन्थियाँ ( sebaceous glands ) रहते हैं जिनमें केशकूपिकाएँ ( hair-follicles ) होती
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