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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८१४ विकृतिविज्ञान cancer ) को ही संकटार्बुद मान बैठते हैं। कभी कभी फुफ्फुस में व्रणशोथात्मक प्रक्रिया होती है या पूयोरस् ( empyema ) बन जाता है उसको भी भ्रमवश संकट के लक्षण मान लेते हैं जो सर्वथैव अनुचित है | फौफ्फुसिक यक्ष्मा से पीडित व्यक्ति में संकट का भ्रम बहुधा हो सकता है । पर इन भ्रमों से दूर रहने पर और हर प्रकार विचार कर लेने पर यह सम्भव है कि एक छोटा सा समूह तर्कुरूप या गोलकोशीय संकट का मिल जावे। परन्तु वास्तव में फुफ्फुस में प्रथमजात संकट यदा कदा ही होने वाली स्थिति मात्र है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरजात संकटार्बुद सर्वप्रथम फुफ्फुस में ही पाया जाया करता है । इसका विचार हम थोड़ा बहुत पीछे कर आये हैं । (३) लसाभऊति या जालकान्तश्छदीय संस्थान के संकट इस संस्थान में दो प्रकार के अर्बुद पाये जाते हैं : १. लससङ्कट ( Lympho-sarcoma ), तथा २. जालिकाकोशीय सङ्कट ( Reticulum-cell - sarcoma ) लस-सङ्कट ( Lympho - Sarcoma ) किन का रोग या हाज किनामय का ज्ञान एक शताब्दी पूर्व हो चुका था पर सन् १८९३ ई० में सर्वप्रथम अन्य लसार्बुदों तथा इस लससंकट में कुण्ड्रेट नामक विद्वान् ने अन्तर बतलाया । लससंकट तथा हाज किनामय में जो अन्तर है। उसे जान लेना परमावश्यक है । लससंकट सबसे पहले लसाभ तन्तुकों के एक समूह में या लसाभ ऊति के एक भाग में उत्पन्न होता है और लसवाहिनियों द्वारा दूसरे समूह या भाग में पहुँचता है । इसका प्रसार संतत ( continuous ) होता है जब कि हाज किनामय में प्रसार असन्तत ( discontinuous ) होता है । यह संकट निम्न स्थलों पर उत्पन्न होता है अ — ग्रैविक लसग्रन्थियाँ, आ---ग्रसनिका, इ—उरस् ( thorax ), ई - महास्रोत, उप्लीहा, ऊ— अस्थिमज्जा और ए - यकृत् । इन स्थलों में जहाँ जहाँ लसग्रन्थक या लसौति पाई जाती है वहीं लससङ्कटोत्पत्ति की सम्भावना रहती है । जैसे उदरक्षेत्र में आन्त्रनिबन्धनी के लसग्रन्थकों से या आन्त्रप्राचीर की उपश्लेष्मल लसकूपिकाओं ( submucous follicles ) से यह बनता है । इस रोग में हाजकिनामय के कई लक्षण भी मिल सकते हैं । उदाहरण के For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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