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अर्बुद प्रकरण तथा शरीरवर्द्धक अन्य तत्त्व आते हैं । प्रोदलपित्तीक्षामेण्य ( methylcholanth. rene ) जो स्वयं एक बहुत बड़ा कर्कटजनक पदार्थ है उससे मिलते जुलते पैत्तिक अम्ल होते हैं और विजार पित्तिक अम्ल ( desoxycholic acid ) द्वारा प्रोदलपित्तीक्षामेण्य को बनाया जा सकता है। ये सभी तथ्य हमें यह अनुमान करने को बाध्य करते हैं कि मनुष्य में सान्द्रवीय चयापचय में विकार आने से कर्कटोत्पत्ति हो सकती है परन्तु अभी तक यह एक प्रमाणशून्य अनुमान मात्र ही है।
लैंगिक न्यासर्गों में स्त्रीमदि ( oestrin ) तथा पुंससान्द्रव (androsterol ) नामक दो में तथा उनके विभिन्न व्युत्पादों ( derivatives ) में कर्कटजनक उदांगारों में प्राप्य दर्शक्षामण्य नामक न्यष्टि विद्यमान होती है जो यह बतलाती है कि उदांगारों के द्वारा लैंगिक परिवर्तन होना सम्भव है तथा लैंगिक न्यासर्गों द्वारा कर्कटोत्पत्ति सम्भव है । स्त्रीमदि (स्त्री न्यासर्ग-ईस्ट्रीन ) का कार्य उदांगारों द्वारा लिया जा रहा है तथा मूषक में स्तनकर्कट की उत्पत्ति के लिए ईस्ट्रीन का प्रयोग पर्याप्त सफलता दे चुका है। पुरुष न्यासर्ग में कर्कटजनकप्रवृत्ति देखने में नहीं आती। इसी प्रकार पुरुष लिंग सम्बन्धी उत्तेजनाएँ उदांगारों द्वारा भी नहीं प्राप्त होतीं। यदि शीघ्र कर्कट पायी मूषक जातियों के मूषक की बीज ग्रन्थियाँ उसके ६ मास की आयु होने के पूर्व ही निकाल दी जावें तो उसके स्तनों में कर्कटोत्पत्ति करना कठिन देखा गया है जो स्पष्ट यह सिद्ध करता है कि ईस्ट्रीन · कर्कटजनन में सहायता अवश्य करती है। जिन मूषक जातियों में स्तनकर्कट आसानी से उत्पन्न नहीं किया जा सकता यदि उनके वर्ग की किसी चुहिया को ईस्ट्रीनयुक्त कर दिया जावे तो उसमें स्तनकर्कट सरलतापूर्वक और शीघ्र बन जाता है।
यह ध्यान देने योग्य है कि मूषकों में फुफ्फुसीय कर्कटोत्पत्ति की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है परन्तु ईस्ट्रीन के प्रयोग के द्वारा जो कर्कट देखा जाता है वह फुफ्फुस में न बन कर स्तन में ही बनता है।
वारेन के द्वारा प्रकटीकृत इस तथ्य को भी हमें स्मरण रखना है कि ईस्ट्रीन से मिलते जुलते कर्कटजनक उदांगार जीवतिक्ति ग (प्रामलक अम्ल) की उपस्थिति में तुरत जारित ( oxidised ) हो जाते हैं। यह तत्व अधिवृक्क ग्रन्थि के बाह्यक में सदा उपस्थित रहता है । इस सबसे यह स्पष्ट है कि ईस्ट्रीन द्वारा उद्भूत कर्कट का सम्बन्ध विविध प्रणालीहीन ग्रन्थियों के साथ रहता है और यह साधारण उदांगारों से उत्पन्न कर्कट से पर्याप्त पृथक् होता है।
स्टिलबीस्ट्रोल नामक द्रव्य जिसकी क्रिया ईस्टीनजनक होती है पर जो स्वयं सान्द्रव नहीं होता द्वारा भी प्रयोगात्मक स्तनकर्कट उत्पन्न किया जा सकता है । यह इस तथ्य की पुष्टि करता है कि स्तनकर्कटोत्पत्ति का कारण रासायनिक पदार्थ नहीं हैं अपि तु यह शरीर व्यापारिक क्रिया ( physiological action ) का परिणाम होता है ।
प्रकृत वा कृत्रिम ईस्ट्रोजनों के कुछ लक्षण तो कर्कटजनक उदांगारों से मिलते हैं जिसके कारण उनसे कर्कटोत्पत्ति होती है तथा कुछ उनमें ऐसे भी लक्षण होते हैं जो
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