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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६८८ विकृतिविज्ञान 1 को उपयोग में लाने के लिए समर्थ हो जाती हैं चाहे फिर उनमें जारक ( औक्सीजन ) उपस्थित हो वा न हो । अर्बुदीयकोशा भ्रौणकोशाओं की तरह पूर्णतः विभिन्नित नहीं होते । उनमें क्रियाशक्ति कम पर वर्द्धन शक्ति प्रचुर परिमाण में पाई जाती है । इससे पता लगाया जा सकता है कि जब किसी पूर्ण प्रगल्भ ऊति में जारक की पूर्ति घटा दी जावे तो वहाँ अवातजीवी मध्वंशन होने लग जावेगा जिसके कारण या तो ऊति ही नष्ट हो जावेगी जैसा कि बहुधा होता है अथवा यह परिवर्तन ऊति के कोशाओं में प्रगुणन ( proliferation ) कर देगा और जिसके परिणामस्वरूप एक कम लाभ दायक पर शीघ्र ही बढ़ने वाला कोशासमूह उत्पन्न होकर अर्बुद बना देगा | नये कोशाओं में विभिन्नन घटा हुआ होता है पर पुनरुत्पत्ति (reproductivity) बढ़ी हुई होती है जिसके कारण एक अर्बुद उत्पन्न हो जाता है पर जिसमें इसे उत्पन्न करने वाले अभिकर्ता के प्रति प्रतिरोध स्वाभाविक रूप में पाया जाता है । हैडो का अध्ययन यह है कि प्रकृत की अतिवृद्धि का प्रतिरोध कर्कटजनक उदांगार करते हैं तथा यह अभी निश्चितरूप से नहीं कहा जा सकता है कि ये अवातजीवी मध्वंशन के भी कारक होते हैं। उसने यह भी प्रदर्शित किया है कि इन अभिकर्त्ताओं द्वारा उत्पन्न अर्बुद उनकी वृद्धिप्रतिरोधक क्रिया का प्रतिरोध करते हैं जैसी कि आशा थी क्योंकि इनके कारण नये प्रकार के कोशाओं की उत्पत्ति होती है । उसका विचार यह है कि उदांगार कोशा वृद्धि का प्रतिरोध बहुत काल तक करते हैं जब तक कि दुष्ट अर्बुद उत्पन्न नहीं हो जाता । इतना काल एक नये प्रकार के कोशा के उत्पन्न होने में व्यतीत होता है । कर्कटजनकपदार्थ मिथाइल खोलेन्थ्रीन की सूक्ष्म मात्राएँऊतिसंवर्धी में तन्तुरुहों ( fibroblasts ) की वृद्धि को घटा देती हैं । इसी प्रकार पैराडाइमिथाइलऐमीनोबेनजीन जो मूषकों के यकृत् में कर्कटोत्पत्ति करता है वह भी आरम्भ में कोशीय विहास उत्पन्न करता है जिसके पश्चात् अर्बुदोत्पत्ति हुआ करती है | रुग्णावस्था में भी तन्तूत्कर्ष ही रक्तपूर्ति को रोकने का तथा ऊति में जारक की कमी का प्रधान कारण होता है । जीर्ण तत्वीय पाक मनुष्य में कर्कट को उत्पन्न करने के लिए प्रायः उत्तरदायी देखा जाता है तथा ऊतियों की मन्दगति से हुई क्षति प्रायोगिक कर्कटोत्पत्तिकारक होती है । जो लोग उदांगारों के कारखानों में कार्य करते हैं उन्हें छोड़कर कर्कटोत्पत्ति मनुष्य में उदांगारों द्वारा होती हुई नहीं सिद्ध होती । अधिक काल तक हुक्का, बीड़ी, सिगरेट या तम्बाकू पीने से फुफ्फुसीयकर्कट होना अवश्य सम्भव है । न्यासर्ग अभिकर्त्ताओं के द्वारा भी कर्कटोत्पत्ति हो सकती है । जब कि बाह्य पदार्थ कर्कटकारक होते हैं तो कोई कारण नहीं कि शरीर के भीतरी द्रव्यों से भी कर्कटोत्पत्ति सम्भव न होसके। इसका कारण यह है कि बाह्य जनत में प्राप्य कर्कट जनक द्रव्यों के साथ शरीर के अनेक पदार्थ रासायनिक दृष्टि से मिलते जुलते होते हैं । दर्शविता मेण्य ( phenanthrene ) वर्ग के उदांगार जो पर्याप्त कर्कटजनक होते हैं। वे रचनाष्टा शरीरस्थ सान्द्रवों ( sterols ) से मिलते जुलते होते हैं । इन्हीं सान्द्रवों में जीवतिक्ति घ ( विटामीन डी ), लैंगिक न्यासर्ग ( sex hormones ) For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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