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३ मोह .
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४२८
विकृतिविज्ञान क्रकच सन्निपात कर्कटक सन्निपात
वैदारिक सन्निपात (अधिक वात हीन पित्त (मन्यवात हीन पित्त (हीनवात मध्य पित्त मध्यकफ)
अधिक कफ) अधिक कफ) चरक भावमिश्र चरक भावमिश्र चरक भावमिश्र १ प्रलाप १ प्रलाप x १ अन्तर्दाह ।
१ अल्पशूल २ श्रम x २ वाङ्सामर्थ्याभाव x २ कटितोद
४ ३ रक्तवर्णमुखमण्डन ३ मध्यदाह ४ श्लेष्माशुष्क
४ रुजा ५ मूर्छा x ५ पार्श्वशूल
५ भ्रम २ अरुचि ६ अरुचि x ६ हृद्व्यथा
६ क्लम ७ भ्रम ., x ७ प्रमीलक
७ शिरःशूल ८ मन्यास्तम्भ x. ८ श्वास
८ बस्तिशूल ३ शिरःशूल x ९ कास
९ मन्याशूल ४ वेपथु x १०हिका
१० हृच्छूल ५ श्वास
x ११ जिह्वादग्धखर । ११ प्रमीलक ६ वमी x १२ गलशूकावृत
१२ श्वास x १३ कूजन
१३ कास ४ १४ शुष्कवक्रौष्ठतालु १४ हिका x १५ तन्द्रा
१५ जाड्य x १६ निद्रा
१६ विसंज्ञता x १७ हतवाक x १७ पिडका x १८ निहतद्युति १ प्रतिश्याय x १९ विपरीतेच्छा २ वमी
x २० रक्तष्ठीवन ३ आलस्य १ शीतक
४ तन्द्रा २ गौरव
५ अरुचि ३ तन्द्रा
६ अग्निमांद्य ४ प्रलाप ५ अस्थिशूल
६ शिरशूल उपरोक्त ६ सन्निपातों का तुलनात्मक विवेचन करने से ज्ञात होता है कि चरक के काश्मीर पाठ तथा भावप्रकाशोक्त लक्षण वर्णन में कोई महत्त्वपूर्ण साम्य नहीं है। इनके साम्य बैठाने की कोई आवश्यकता भी हमें प्रतीत नहीं होती।
अब हम अन्य ग्रन्थों में जो १३ प्रकार के सन्निपात दिये हैं उनका नामोल्लेख करके एक एक का वर्णन आरम्भ करेंगे। ये १३ सन्निपात निम्न कहे जाते हैं
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