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ज्वर
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चरक
फल्गु या भल्लु के वर्णन में तीनों ही आचार्य एकमत होते हुए देखे जारहे हैं। तीनों ने रोग के मूल लक्षणों को स्वीकार किया है कि शीत और दाह ये दोनों ही इस रोग में देखने में आते हैं। बाह्य अङ्ग में शीतलता अर्थात् देखने से हाथ फिराने से शरीर ठण्डा और भीतर रोगी जला जाता हो ऐसा अनुभव करता है। थर्मामीटर से देखने पर ज्वर १०४ मिले और ऊपर से देखने पर ९९ से अधिक न लगे तथा घोर ज्वाला के साथ डटकर प्यास हो यह इस रोग की विशेषता है। इसमें छाती और सिर में जकड़न, श्वास का प्रतिमिनट वेग बढ़ा हुआ तथा हिचकी भी मिलती है। शरीर पर खुजली या चकत्ते देखे जाते हैं। इससे हम यह कह सकते हैं कि इस सन्निपात के सम्बन्ध में अधिक मतभेद नहीं है और इसके लक्षणों में पर्याप्त स्थायित्व पाया जाता है। ___आगे भालुकि ने सन्निपातों का वर्णन नहीं किया अतः हमें केवल चरक और भावमिश्रोक्त वर्णन का ही आश्रय लेना पड़ता है। इनको हमने सन्निपात भेददर्शकतालिका के अन्तर्गत स्पष्ट कर दिया है यहाँ साम्य वैषम्य प्रदर्शनार्थ तालिका प्रस्तुत करते हैं:___ संमोहकसन्निपात पाकलसन्निपात
याम्यसन्निपात (अधिक वात मध्यपित्त- (मध्यवात अधिकपित्त
(हीनवात अधिकहीनकफ)
हीनकफ)
पित्तमध्यकफ) भावमिश्र
भावमिश्र चरक भावमिश्र प्रलाप
१ मोह
x १ हृद्दाह २ श्रम
२ प्रलाप x २ यकृत्पाक ३ मोह
३ मूर्छा x ३ प्लीहापाक
४ मन्यास्तम्भ x ४ फुफ्फुलपाक ५ नूर्छा
५ शिरोग्रह x ५ आन्त्रपाक ६ अरुचि
६ कास x ६ पूयरक्तनिर्गम ७ श्वास
x ७ शीर्णदन्तता ८. एकपक्षवध ५ भ्रम ८ भ्रम
१ हारिद्रमूत्र १ श्वास
९ तन्द्रा
२ हारिद्रनेत्रता २ कास
१० संज्ञानाश ३ दाह ३ प्रतिश्याय
११ हृदिव्यथा ४ तृष्णा ५ मुखशोष
१२ स्रोतोरक्तस्रुति ५ भ्रम ४ अतिपावशूल
१३ संरक्तस्तब्धनेत्रता ६ अरुचि २ पर्वभेद ३ अग्निमान्य ४ तृष्णा ५ दाह ६ अरुचि
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