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विकृतिविज्ञान
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३ हृल्लास ४ दाह ५ वमि ६ अरति
३ हृद्ग्रह ४ दाह ५ छर्दि
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७ भ्रम
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८ तन्द्रा
६ तन्द्रा ९कास
७ शीतज्वर ८ निद्रा
१ रात्री निद्रा ९ गौरव ५० मूर्छा ११ तृष्णा १२ तृप्ति १३ ष्टीवन १४ मुखमाधुर्य
२ मुखमाधुर्य १५ श्रोत्रनिग्रह १६ वानिग्रह
३ गद्गदवाणी १७ दृष्टिनिग्रह
४ प्रस्तब्धनेत्रता
५ जाड्य इस सन्निपात में भावमिश्र ने चरकोक्त एक भी लक्षण नहीं पढ़ा उनके पढ़ने की आवश्यकता भी नहीं क्योंकि प्रकृतिसमसमवायरोगलक्षण ग्रन्थकार बहुधा गिनाते नहीं । पर भालुकि ने अरति भ्रम और कास को छोड़ ६ लक्षण चरक के देते हुए ११ लक्षण अलग दिये हैं। जिनमें ४ लक्षण भावमिश्र से मिलते हैं। भावमिश्र ने जाड्य नामक लक्षण स्वतन्त्रतया दिया है । तीनों का लक्ष्य यहाँ भी एक है।
वातपित्तोल्बण सन्निपात इसे भावप्रकाश में बभ्रु या बभ्र कहा जाता है। भालुकि ने इसे विभ्रु नाम दिया है । इसके लक्षणों की तालिका नीचे दी जाती है:चरक भालुकि
भावमिश्र १ भ्रम २ तृष्णा
१ तृष्णा ३ दाह ४ गौरव ५ शिरःशूल
२ ज्वर
१ तृष्णा
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२ज्वर
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