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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ज्वर ५ घोर अन् ६ हिक्का ७ श्वास ८ प्रमीलक ९ विसूचिका १० पर्वभेद ११ प्रलाप गौरव चरक १ आलस्य २ अरुचि १२ १३ कुम १४ नाभिशूल १५ पार्श्वशूल १६ स्रोतों से रक्तागम १७ शूल Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir X X X X X X X X X X X X ४ अतिसार ५ अम ६ मुखपाक उपर्युक्त तालिका से यह विदित होता है कि तीनों ने दाह की घोरता के बलपर ही पित्तल्बण नाम दिया है । तीनों ने रक्तागम बतलाया है। एक ने मल और मूत्र में दूसरे ने स्रोतों से और तीसरे ने त्वचा से । दो ने तृष्णा में और दो ने मूर्च्छा में समानता बतलाई है । भालुकि ने जो अपने १७ लक्षण दिये हैं उसका कारण स्पष्टतः बतलाया है १ आलस्य २ अरोचक शीतं च सेव्यमानस्य कुप्यतः कफमारुतौ । ततश्चैनं प्रधावन्ते हिक्काश्वासप्रमीलकाः ॥ आदि आदि पित्तल्बण सन्निपात में घोर ज्वर और घोर दाह से जलते हुए रोगी को जब शीतो. पचार किया जाता है तब उसे कफ और वात का प्रकोप होकर हिक्का, श्वास, प्रमी कादि रोग बनते हैं । ल का जिन वैद्यों ने विचार किया है उन्हें पता है कि शीतोपचार करते करते न्यूमोनिया का आक्रमण हो जाता है । इस प्रकार हम यहाँ देखते हैं। कि तीनों का लक्षण एक ही रहा है पर तीनों ने तीन रूपों में ही पित्तोल्बणसन्निपात को देखा है । For Private and Personal Use Only ४२३ गात्रे च विन्दवो रक्ताः कफोल्बणसन्निपात इसे भालुकि ने कफ्फण बतलाया है और भावमिश्र ने कम्पन | इसका ज्ञान निम्नलिखित तालिका से सहज ही हो जाता है भालुकि भावमिश्र x X
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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