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अर्बुद - ८४३, अर्बुद - ८५१, श्रौणार्बुद - ८६० ।
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[ ५ ]
वाहनीय अर्बुद - ८४५, अन्तश्छदार्बुद - ६-८५०, शोणोत्पादक ऊतियों के रङ्गित अर्बुद - ८५६,
वातऊतीय अर्बुद - ८५१,
संयुक्तार्बुद या
भङ्गुरता - ८७४,
परिवर्तन - ८७५,
रागु
रसपरिभाषा और उसके कार्य - ८६३, -८६६, रुधिराणुओं की विकृतियाँ- ८६९, रंगदेशना-८७०, संख्यासम्बन्धी परिवर्तन - ८७१, सम्बन्धी परिवर्तन - ८७२, प्राइसजोन्स वक्रता - ८७१२, भरञ्जनसम्बन्धी परिवर्तन - ८७३,
द्वादश अध्याय
वैकारिक [ Blood Pathology ] ८६३-६४६
आतञ्चनजन्य
शोणप्रसमूहिजन्य
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रसरक्त व्यापत्तिज रोग-८६५, रुधिशोणवर्तुलिसम्बन्धी परिवर्तन - ८६०, बहुकोशारक्तता - ८७१, आकारस्वरूपसम्बन्धी परिवर्तन - ८७३, न्यष्टिवान् रुधिराणु - ८७४, रुधिराणु और परिवर्तन - ८७५, रक्तावसादन गतिजन्य परिवर्तन - ८७६, रुधिर रुहोत्कर्षश्रौणीय - ८७८, सितकोशोत्कर्ष - ८८२, सितकोशा
सितकोशा- ८८१,
रक्तबिम्बाणु - ८८०, पकर्ष - ८८४, अकणकायाणुत्कर्ष - ८ - ८८४, अरक्तता, अल्परक्तता या रक्तक्षय - ८८७, रक्तक्षयक श्रेणीविभाजन - ८८९, घातक रक्तक्षय-८९१, अन्य परमकायाण्विक रक्तक्षय - ९०१, अमज्जकीय रक्तक्षय - ९०१, ग्रहणीजन्य रक्तक्षय - ९०१, वे रक्तक्षय जिनमें लोहादि का प्रभाव रहता है - ९०५, प्राथमिक उपवर्णिक रक्तक्षय - ९०७, हरिदुत्कर्ष - ९०९, अस्थिमज्जकीय क्रिया का अवसाद - ९१०, बहुकोशारकता - ९३७, परम बल बहुकोशारकता - ९३८, सितरक्तता - ९३८, मज्जाजन्य सितरक्तता - ९३९, तीव्र सितरकता - ९४५, एककोशीय सितरक्तता - ९४७, असितरक्कीय सितरक्तता - ९७९ ।
त्रयोदश अध्याय
अग्निवैकारिकी ६५०-१०२०
श्राहारविधि - ९५१, भोज्यसाद्गुण्य - ९५१, आहार और मात्रा - ९५२ श्रामदोष
और उनके गुण - ९५३, चतुर्विध जाठरामि - ९५४, पाचकाभि की महत्ता - ९५७, प्रकृतिदृष्टथा अग्निविचार - ९५८, अग्निमान्द्य और श्रमदोष - ९५९, अजीर्ण लक्षण - ९५९, अजीर्ण के कारण - ९६१, अजीर्ण और उसके प्रकार - ९६२, विसूचिका, सक तथा विलम्बिका - ९६५, अतीसार - ९६८, वातज श्रतीसार- ९७२, पित्तज अतीसार - ९७३, कफज अतीसार - ९७४, सान्निपातिक प्रतीसार - ९७५ श्रामातिसार तथा पक्कातीसार- ९७६, शोकातीसार- ९७८, रक्तातीसार - ९७८, विभिन्न प्रतीसारों की सम्प्राप्तियों पर संक्षिप्त विचार - ९७९, प्रवाहिका - ९८०, ग्रहणी - ९८१, ग्रहणी रोग
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