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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऊतिमृत्यु या ऊतिनाश मृत्यु में क्या होता है ? ऊपर जो ३ ऊति नाशक कारण दिये हैं उनमें से किसी वा सभी के कारण जब ऊति का नाश होने लगता है तो उसमें अनेक परिवर्तन देखने को मिलते हैं । ये परिवर्तन इस क्रम में देखे जाते हैं : - २३३ १. सर्वप्रथम उस ऊति के कोशा फूल जाते हैं। इस अवस्था को मेघाभ-शोथावस्था ( the stage of cloudy swelling ) कहते हैं । इस अवस्था की मुख्य बात यह है कि ऊति की स्वाभाविक क्षारीय प्रतिक्रिया ( alkaline reaction ), उसकी मृत्यु के कारण सद्यः उत्पन्न दधिक अम्ल, शुक्तिक अम्ल तथा घृतिक अम्लों ( lactic acid, acetic acid, butyric acids) के कारण आम्लिक (acidic ) हो जाती है । २. तत्पश्चात् ऊतिकोशाओं में उपस्थित स्नेह का विघटन होता है । इसे स्नेह विह्नासावस्था ( the stage of the degeneration of fat ) कहते हैं । इस अवस्था में स्नेहभाग अतिसूक्ष्म बूँदों के रूप में आकर श्वेत साबुन के वर्ण का स्वफेनित ( saponified ) हो जाता है और फिर उसका प्रचूषण कर लिया जाता है । ३. तदुपरान्त ऊतिस्थ प्रोभूजिनों का पाचन होता है । जिस प्रकार महास्रोत में आहार्य प्रोभूजिन का पाचन अग्न्याशय रस के द्वारा होता है ठीक वैसे ही कोशानिर्मात्री प्रोभूजिन तिक्ताति ( अमोनिया ), तित्तयम्ल ( अमीनो एसिड्स ), द्वितित्तयम्ल ( diamino acids ) बनने लगते हैं । इसे प्रोभूजांशिकावस्था ( proteolytic stage) कहते हैं । ऊपर जो तीन अवस्थाएँ बतलाई गई हैं वे निर्मापक घटकों की दृष्टि से कही गई हैं । ऊतिसंरचनादृष्ट्या ( histologically ) निम्न परिवर्तन भी देखे जाते हैं : -- न्यष्ठीलानाश १. न्यष्टि- अभिरञ्जन की हानि ( loss of nuclea-staining ) होती है। २. कोशास्थ न्यष्ठीला ( nucleus of the cell ) विषमाकृतिक हो जाती है पर उसका अभिरंजन गहरा होता है । यह सान्द्रातिता ( pyknosis ) कहलाती है । ३. कोशास्थ न्यष्ठीला के कण विघटित हो जाते हैं जिनका अभिरंजन खूब हो सकता है । जिसे न्यष्टिभोटन ( karyorrhexis ) कहते हैं । ४. न्यष्ठीला की अभिरञ्जन शक्ति का ह्रास हो जाता है । इसे न्यष्टयशन (karyolysis) कहते हैं । For Private and Personal Use Only कोशानाश ४. कोशाशरीर छोटे छोटे अणुओं में विभक्त हो जाता है जिसके कारण उसका आसृतीयनिपीड ( osmotic pressure ) बढ़ता है जो उसे फुला देता है ।
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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