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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३२ विकृतिविज्ञान दूसरी ओर कोई न कोई मार्ग रक्तसंवहन को मिल जाता है। परन्तु जब कभी बड़ी बड़ी सिराओं में अवरोध ( venous engorgement ) होता है तथा उसके कारण फुफ्फुसों वा हृदय में रक्तसंवहन क्रिया में कठिनता उत्पन्न होती है तब यकृत् के मध्यखण्ड की खण्डिकाओं ( lobules ) में ऊतिमृत्यु देखी जाती है। ___ रासायनिक विष और भौतिक अभि कर्ता ( Chemical poisons & Physical agents ) निम्नाङ्कित भौतिक और रासायनिक (physical & chemical ) कारणों से भी ऊतिमृत्यु हो सकती है :-- १. बाह्य आघात ( external violence ) २. अत्यधिक सन्ताप वा शीत (extreme variance in temperature) ध्रव प्रदेश की यात्रा करने वाले यात्रियों की अतिशीत के कारण पैर की अंगुलियाँ आदि गलकर कट जाती हैं वह इसी कारण है। ___३. दाहक विष ( caustic poisons )-इसमें कोई तीक्ष्ण क्षार या तीक्ष्ण अम्ल लिया जा सकता है। ४. भास्वर विषता ( phosphorus poisoning ), ५. सोमल विषता (arsenic poisoning ), ६. सीस विषता ( lead poisoning ), ७. नीरवम्रल (क्लोरोफार्म) विषता, ८. तेजातु ( radium ) अथवा क्ष-किरणों से अंग वा ऊति विशेष का नष्ट हो जाना। __रोगाण्विक विषियाँ रोहिणी ( Diphtheria ), प्रमेह पिडिकाएँ ( carbuncles ), सव्रण मुख91( ulcerative stomatitis ), #1191# ( ulceration of vulva ), में विभिन्न ऊतियों का नाश होता है। इनमें विभिन्न गोलाणुओं के कारण ऊतिमृत्यु होती हुई देखी जाती है। फुफ्फुसपाक ( pneumonia) में जो फौफ्फुसिक ऊति का नाश इतस्ततः मिलता है वह फुफ्फुस गोलाणुओं ( pneumococci ) द्वारा किये गये विनाश का परिणाम होता है। इसी प्रकार आन्त्रिक ज्वर में आँतों की श्लेष्मलकला में अवस्थित जो पेयर सिध्म (Peyer's patches ) देखे जाते हैं वह तद्रोगकर्ता जीवाणु के कारण देखे जाते हैं। फुफ्फुसपाक और आन्त्रिक ज्वर में यकृत्प्लीहादि अङ्गों में विकृति का भी परिणाम उसी निमित्त से है। वातिजन प्रावर गदाणु क्लोस्ट्रीडियम वैल्चाई (Cl. welchii ) नामक जीवाणु के कारण सवातकोथ (gas gangrene ) जैसी व्याधि होती है जो किसी भी ऊति का सर्वनाश कर देती है। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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