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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७८ विकृतिविज्ञान वह तान्तुक ( fiibrillated ) होकर प्रफुल्लित ( varicose ) हो जाता है तथा अन्त में विघटित हो जाता है उसके खण्डों (fragments ) को भक्षिकोशा दूर ले जाते हैं। विमजिकञ्चुक विमज्जि के विन्दुको ( droplets of myelin ) में परिणत हो जाता है जो गुर्विक अम्ल ( osmic acid ) के द्वारा कृष्णवर्ण के अभिरञ्जन से दिखाई देते हैं और वातनाडीसंस्थान में जहाँ तक चेतातन्तु को आघात पहुंचा है वहाँ तक पहँचाने जा सकते हैं। विमज्जिकञ्चुक की न्यष्टियों में प्रगुणन प्रारम्भ हो जाता है वे कोशा दो कार्य करते हैं : १-स्वच्छकीय ( scavenger's work ) जिसके द्वारा विमजिकञ्चुक तथा अक्ष-रम्भ के अवयवों के अवशेषों को दूर किया जाता है तथा २-पुनर्निर्माण ( reconstruction ) जिसके द्वारा वे एक प्रकार की प्रणाली ( tube ) बना लेते हैं जिसमें होकर अक्ष-रम्भ के समीपान्त से निकले हुए चेतातन्तु पुनः आगे बढ़ते हैं। बझ्झाड और ग्रीनफील्ड के कथनानुसार विहास की प्रक्रिया चुपके से पुनर्जननकारीक्रिया की तैयारी करने लग जाती है जिसके कारण चेताकोशा या चेतातन्तु के पुनर्जनन का मार्ग निष्कण्टक हो जाता है । यह भी स्मरण रखना आवश्यक है कि वालरीयविहास का प्रमुख कारण जीवति ख ( vitamin B.) का शरीर में अभाव होना माना जाता है । यह तो हमने कटे हुए चेतातन्तु के दूरस्थ भाग ( distal end ) का वर्णन किया अब समीपस्थ भाग ( provmal end ) में जो परिवर्तन होते हैं उन्हें भी समझना होगा। यहां विमजिकञ्चुक का विहास प्रथम तनुकी ( first node of Ranvier ) तक हो जाता है तथा इस प्रथम खण्ड ( segment ) में विमजिकञ्चक की न्यष्टियाँ बढ़ती रहती हैं । कञ्चुक के कोशा दूरस्थ भाग के कटे हुए सिरे की ओर बढ़कर उससे मिलने का प्रयास करते हैं। परन्तु अक्ष-रम्भ में सर्वाधिक क्रिया देखी जाती है उसके तन्तुक ( fibrils ) तुरत उगने लगते हैं वे बहुत अधिक संख्या में उत्पन्न हो जाते हैं और दूरस्थ भाग की ओर बढ़ने लगते हैं यदि नष्टप्राय भाग में अत्यधिक व्रणवस्तु नहीं बन पाई और क्षेत्र कोमल रहा तो वे पुराने मार्ग को फिर बना लेते हैं और उन पर विमजिकञ्चुक पुनः चढ़ जाता है जितना महत्त्व उपरोक्त परिवर्तनों का है उतना ही महत्त्व उन परिवर्तनों का भी है जो एक चेता-तन्तु में उसके अक्ष-रम्भ के विह्रास के कारण उत्पन्न होते हैं । जब अक्षरम्भीय विहास (axonal degeneration) हो जाता है तो कोशा सूज जाता है उसकी बहुभुज बहीरेखा (polygonal outline ) मिट जाती है और वह गोल हो जाता है। कोशारस की ग्रोदकणिकाएँ टूट-टूट कर विलुप्त हो जाती हैं इस विलुप्तीकरण को वर्णहास (chromatolysis ) कहते हैं । न्यष्टि एक पार्श्व को सरक जाती है जिसके कारण कोशा की आकृति उत्केन्द्रित ( eccentric ) हो जाती है। चेतातन्तु के कटने के ३ सप्ताह पश्चात् मरम्मत का कार्य प्रारम्भ हो जाता है। अभिवर्णकणिका ( chrtom. atin granules ) धीरे-धीरे पुनः बनने लगते हैं न्यष्टि कोशा के केन्द्र में आ जाती है तथा कोशा पुनः अपनी पूर्वाकृति और बहीरेखा ( outline ) को प्राप्त कर लेता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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