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विकृतिविज्ञान
मां के कीलक अरि के समान जब प्राणियों को कष्ट देते हैं तब वे अर्श कहलाते हैं। ये कीलक गुदमार्ग के अवरोध के कारण ही उत्पन्न होते हैं। इनकी उत्पत्ति में प्रधान उत्तरदायित्त्व दोषों का रहता है । वातादिक दोष त्वचा, मांस अथवा मेदो धातु को दूषित करके विविध रूपवाले मांसाङ्कुर या मांस कीलक अपानादि भागों में उत्पन्न कर देते हैं | आदि शब्द से कर्ण और नासागत अर्श लिये जाते हैं ।
वाग्भट ने अर्श के भेदों का एक सुन्दर विवेचन किया है। उसने अर्श को पहले दो भेदों में बाँटा है
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१. सहज अर्श जो जन्म से ही साथ आते हैं । तथा
२. जन्मोत्तर अर्श जो व्यक्ति को बाद में उत्पन्न होते हैं ।
उसके बाद २ भेद और भी किए हैं :
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१. शुष्क अर्श तथा
२. स्रावि अर्श ।
शुष्का सदैव सूखे और सशूल होते हैं स्रावी अर्शों से रक्तस्राव होता रहता है । अर्श की दृष्टि से शारीर का वर्णन वाग्भट ने बहुत सोच समझ कर किया है
गुदः स्थूलान्त्रसंश्रयः ॥
अर्धपञ्चाङ्गुलस्तस्मिस्तिस्रोऽभ्यर्धाङ्गुलाः स्थितः । वल्यः प्रवाहिणी तासामन्तर्मध्ये विसर्जनी || बाह्या संवरणी तस्या गुदौष्ठो बहिरङ्गुले । यवाध्यर्धः प्रमाणेन रोमाण्यत्र ततः परम् ॥
बृहदन्त्र के आश्रित और उसका अन्तिम भाग गुद कहलाता है । इस गुद में तीन वलियाँ होती हैं जिनमें सबसे भीतरी वलि प्रवाहणी कहलाती है जो मल का नीचे की ओर प्रवाहण करती है । दूसरी बीच की जो मल का विसर्जन करती है विसर्जनी बलि कहलाती है । तीसरी सबसे बाहर की ओर स्थित वलि संवरणी कह लाती है जो मल को यथा इच्छा रोका करती है । सम्पूर्ण गुद का प्रमाण अर्ध पञ्चाङ्गुल याने सार्द्धचतुरङ्गुल ( ४॥ अंगुल ) बतलाया जाता है गुद के इस ४ ॥ अंगुल भाग में अध्यर्धाङ्गुल (१॥ - १॥ अंगुल ) की दूरी पर तीनों वलियाँ प्रतिष्ठित हैं। एक-एक वलि १॥ अंगुल में समाती है । रोमावलि से १३ यव ऊपर गुदोष्ठ होता है उससे १ अंगुल ऊपर प्रथम वलि संवरणी होती है । ये वलियाँ शङ्खावर्त के समान एक के ऊपर दूसरी स्थित रहती हैं वर्ण से ये हाथी के तालु के समान होती हैं
शङ्खावर्त्तनिनाश्चापि उपर्युपरि संस्थिताः । गजतालुनिभाश्चापि वर्णतः सम्प्रकीर्तिताः ॥
सहज अर्श
आयुर्वेदज्ञ इसमें पूर्णतः विश्वास करते हैं कि अर्श माता-पिता के अपचार से उत्पन्न होने वाला एक पैत्रिक रोग है । इसका प्रमाण जानने के लिए दूर जाने की आवश्यकता नहीं है । किसी भी अर्श रोगी का इतिहास जानकर यह पता सहज ही लगाया जा सकता है कि उसके पिता, माता, दादी, दादा, नानी या नाना को यह रोग रहा कि नहीं। साथ ही सब अर्श से पीडित व्यक्तियों के मातापितादिको अर्श
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