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वृहद्-अतिचार। ५४ कराव्या। इंटवाह, नीवाह पचाव्या। धाणी, चणा, पक्वान्न करी वेच्या। वासी माखण तपाव्यां । अंगीठा कीधा, कराव्या । तिलादिक संचीया, फागुण मास उपरान्त राख्या। कूकडा, सूडा प्रमुख पोष्या, अनेरुं जे काई बहु सावद्य कठोर कर्मादिक समाचरयुं ॥ सातमा भोगोपभोग-व्रत-विषइओ० ॥७॥ ___ आठमा अनर्थ-दंड-विरमण-व्रतना पांच अतिचार ॥ कंदप्पे कुक्कु इए ॥ कंदर्प लगे विटनी परे हास्य, कुतूहल, मुखादि-अंग-कुचेष्टा कीधी। मूरखपणा लगे कुणहीने असंबद्ध वाक्य बोल्या । खांडा, कटारी, कुसी, कुहाडा, रथ, ऊखल, मूसल, अगन, घरटी आदिक सज करी मेल्या, माग्यां आप्यां, कणक वस्तु ढोर लेवराव्यां, अनेरो काइ पापोपदेश दोधो। अंघोल, नाण, दांतण, पग-धोअण पाणी तेल अधिक आण्यां हीडोले हींच्या। राज-कथा
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