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अभय-रत्नसार।
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जिन्होंने मृतकके शवको स्पर्ण किया हो, वह चौवीस प्रहर प्रतिक्रमण न करें। जिनको नित्यके नियम हो वह समताभाव रख, संबर पनेमें रहें। किन्तु मुखसे नवकार मन्त्रका भी उच्चारण न करे। स्थापनाचार्यजीको छुए नहीं। और जो मृतकको न छुआ हो वह आठ प्रहर प्रतिक्रमण न करे।
रजस्वला स्त्री चार दिन पर्यन्त घरकी किसी चीज़से स्पर्ष न करे । चार दिन प्रति क्रमण न करे। पाँच दिन पूजन न करे । यदि रोगादिके कारण स्त्राको रक्त बहता मालूम हो तो उसके लिये विशेष दोष नहीं । स्नानादि करके शुद्ध-पवित्र हो कर पांच दिन बाद पुस्तकादिके स्पर्ष करे। प्रभु दर्शन करे। अग्रपूजा करे, परन्तु अंग-पूजा न करे । रजस्वला स्त्री यदि तपस्या करे तो वह फलवती होती है। जिस घरमें जन्म-मरणका सूतक हो, वहाँ पर मुनिराज १२ दिन अहार-पानी न लेवें। सूतक वालेके घरका पानी या अग्नो-पूजनके काममें नहीं आ सकता।
गाय, भेस, घोड़ी, सांड, आदि घरमें विआवे तो १ दिनका सूतक लगता है। यदि मरण हो जाय तो जब तक शव न उठाया जाय तब तक सूतक रहता है।
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