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वृहद अतिचार। दांडी अणपडिलेही, वसतो अणसोधी; असिज्झाई अणोझा-काल-वेलामांहि दशवैकालिकप्रमुख सिद्धान्त भण्यो गुण्यो। योग कह्यांपखे भण्यो। ज्ञानोपगरण पाटी, पोथी, ठवणी, कवली, नवकरवाली, सांपडा, सांपडी, वही, दस्तरी, ओलीया, कागल-प्रमुख प्रतें आशातना हुई, पग लागो, थूक लागो, ओसीसे मूक्यो, कने छतां आहार-नोहार कीधो, ज्ञानद्रव्य भक्षण-उपेक्षण कीधो, प्रज्ञापराधे विणाश्यो, विणसतो उवेख्यो, छती शक्ते सारसंभाल न कोधी। ज्ञानवंत प्रतें मच्छर वह्यो, अवज्ञा-आशातना कीधी, कोई प्रतें भणतां गुणतां प्रद्वष-मत्सर अंतराय-अपघात कीधो। मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनः-पर्यवज्ञान, केवलज्ञान, ए पांच ज्ञान तणी असदहणा कीधी । कोई तोतलो बोबडो हस्यो, वितक्यों । आपणा जाणपणा तणो गवे चिंतव्यो। अष्ट
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