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अभय रत्तसार।
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उस समय तो परम आनन्द मालूम होता है। परन्तु कालान्तरमें उन्हींके कारण असाध्य रोग हो जाया करते हैं, जिनसे मनुष्य अल्प अवस्थामें ही संसारसे चल बसता है। अतएव मनुष्य मात्रको अभक्ष्य चीज़ोंका त्याग करना परमावश्यक है।
अब आप धार्मिक भावोंसे भी इस विषयका विचार कोजिये, जिससे आपको इसके त्यागका सच्चा महत्व और भी मालूम हो जायगा। जितने अभचय फल और कन्दमूल हैं, उन सभीमें दृश्य और अदृश्य रूपसे अनेक सूक्ष्मजीव रहते हैं। जब वह फल और कन्दमूल सेवन किये जायेंगे तो उन बिचारे जीवोंकी क्या दशा होगी यह आप स्वयं समझ लें। प्रत्येक प्राणीका कर्तव्य है, कि वह एक दूसरेकी आत्माको जहाँ तक बन पड़े बचानेका यत्न करे। छोटे-बड़े सभी जीवोंमें एकसी आत्मा है। उसमें छोटी-बड़ीका किसी तरह भेद नहीं। जितनी बड़ी आत्मा
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