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अभय-रत्नसार। ६८३ भयवं दसगण भद्दो का पाठ पढ़े। पीछे दाहिना हाथ स्थापनाचार्यजीके सामने सीधा रख कर तीन नवकार गिने, (पोसह और सामायिक पारनेका पाठ एक ही बार कहा जाता है) यानी दोनोंके पारनेका पाठ एक ही है।
देसावगासिक लेने और पारनेकी विधि । देसावगासिक लेनेकी विधि पोसह लेनेकी विधिके अनुसार समझना, परंतु पोसह लेनेके
आदेशमें देसावगासिकका आदेश लेना। जैसेदेसावगासिक मुहपत्ति पडिलेहुं ? देसावगासिक संदिस्सा? ठाऊं ? देसावगासिक दंडक उच्चरा वोजी ? करेमिभंते पोसहके एचक्खाणके बदले अहन्न भंते ? तुह्माणं समीवे देसावगासियं पञ्चक्वामि इत्यादि देसावगासिकका पञ्चक्खाण तीन बार उचरे। बहुवेलका आदेश न लवे, देसावगासिक जघन्यसे दो सामायिकका ओर उत्कृष्टसे १५ सामायिकका होता है।
देसावगासिक पारनेकी विधि पोसह पारनेकी
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