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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विधि-संग्रह। वखाण । तेह लवधि तेवीसमो रे, तेजोलेश्या जाण, चतुर नर सुणज्यो ए सुविचार, आगमने अधिकार ॥ च० ॥ वारू लवधि विचार ॥ च०॥ एत्रांकणी ॥ १५ ॥ चवद पूरवधर मुनिवरू रे, उपजता सन्देह। रूप नवो रचि मोकले रे, लबध आहारक एह॥च० ॥१६॥ तेजोलेश्या अगननी रे, उपशमवा जलधार । मोटी लबधि पचवीसमी रे, शीतोलेश्या सार ॥ च०॥ १७॥ जेण सगतिसं विकुरवै रे, विविध प्रकार रूप । सदगुरु कहै छावोसमी रे, वैक्रिय लबधि अनूप ॥ च० ॥१८॥ एकण पात्रे आदमी रे, जीमाडै केइ लाख। तेह अक्खीणमहानसी रे, सत्तावीसमी साख ॥ २० ॥ १६ ॥ चूरै सेन चकीसनी रे, संघादिकने काम । तेह पुलाक लबधी कही रे, अट्रावीशमी नाम ॥ च० ॥२०॥ तेज शीत लेश्या बिहुँ रे, तेम पुलाक विचार । भगवतीसूत्रमें भाषियो रे, ए त्रिहुनो अधिकार ॥ च० ॥२१॥ पन्नवणा अहारनोरे, कलपसूत्र गण For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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