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अभय रत्नसार ।
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खेरु थाय, ए लवधि इग्यारमी आसीविश कहिवाय ॥ १० ॥ सहु सुखम चादर देखे लोकालोक, ते केवल लबधी बारमय सहू थोक | गणधर पद लहिये तेरम लवधि प्रमाण, चवदम लबधे करी चव पूरब जाण ॥ ११ ॥ तीथंकर पदवी पामे पनरमी लबधि, सोलम सुखदाई चक्रवत्ति पद रिद्ध । बलदेवतणो पद लहिय सतरमी सार, अढारमी आखा वासुदेव विस्तार ॥ १२ ॥ मिसरी वृत चीरें मेल्याजेह सवाद, एहवी लहै वाणी उगणीशम परसाद । भणियो नवि भूलै सूत्र अरथ सुविचार, ते कुष्ट कबुद्धी वोसम लबधि विचार ॥ १३ ॥ एके पद भणियां वै पद लख कोड, इकवीसमी लबधी पयाण सारणी जोड । एके अरथे करी ऊपजै अरथ अनेक, बावीसम कहिये बीजबुद्धि सुविवेक ॥ १४ ॥
ढाल ॥ ३ ॥ कपुर हुवै अति ऊजलो रे - ए चाल || सोलह देशतणी सही रे, दाहक सगति
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