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अभय रत्तसार ।
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अवगाहन करता हुआ व्यतीत करता है । इस तपश्चर्या के प्रभावसे रोग, शोक, भय आदि कोई भी दुख नहीं आने पाते। इसलिये तपस्या करने वालेको यह तपस्या अवश्य ही करनी चाहिये । || अठाईस लब्धि तपका स्तवन ॥
दुहा ॥ प्रणमु' प्रथम जिनेसरू, श्रुद्ध मने सुखकार । बधि अट्ठावीस जिन कही, आगमने अधिकार ॥ १ ॥ प्रश्नव्याकरणें प्रगट, भगवतीसूत्र मकार | पन्नवणा आवश्यके, वारू लबधि विचार ॥ २ ॥ आंबिल तप कर ऊपजै, लवधां अट्ठावीस । ए हिव परगट अरथसुं, सांभलज्यो सुजगीस ॥ ३॥
ढाल ॥ १ ॥ सफल संसारनी- एदेशी ॥ अनुक्रमें एह अधिकार गाथातणे, लबधिना नाम परिणाम सरिषा भणे । रोग सहुजाय जसु अंग फरस्यां सही, प्रथम ते लबधि
नाम आमोसही ||४|| जासु मल मूत्र औषध समा जागिये, बीय वप्पोसही लबधि दखाणियै ।
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