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अभय रत्नसार । सामिउ तुहु मायबप्पु, तुह मित्त पियंकरु । तुहु गइ तुहु मइ तुहुजि ताणु, तुहु गुरु खेमंकरु ॥ हउ दुहभरभारिउ वराउ, राउ निब्भगह । लीणउ तुह कम-कमल-सरणु, जिण पालहि चंगहा ॥२०॥ पइ किवि कय नीरोय लोय, किवि पाविय सुहसय। किवि मइमंत महंत केवि, किवि साहिय-सिव-पय। किवि गंजिय-रिउ-वग्ग केवि, जस-धवलिय-भू-यल मइ अवहीरहि केण पास, सरणागय-वच्छल।२१। पच्चुवयार-निरीह नाह, निफ्फन्न पओयण । तुह जिण पास परोवयार-करणिक परायण ॥ सत्तु-मित्त-सम-चित्त-वित्ति, नय-निंदय-सममण। मा अवहीरय अजुग्गउवि, मई पास निरंजण ॥२२॥ हउ बहुविह-दुह-तत्त-गत्तु तुह दुह-नासण-परु। हउ सुयणह करुणिक-ठाण, तुहु निरु करुणाकरु ॥ हर जिण पास असामि सालु, तुहु तिहुअण-सामिय। जं अवहीरहि
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