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अभय - रत्नसार ।
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गो ३०॥ तपहुंती पापी तस्था, निसतरियो अरजुनमाल रे । तपहुंती दिन एकमें, शिव पाम्यो गजसुकमाल रे || गो० ३१ ॥ तपना फल सूत्रे कह्या, पच्चक्खाणतणा दस भेद रे । अवर भेद पिण घणा करतां छदे त्रय वेद रे || गो० ३२ ॥
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( कलशः) ॥ पच्चक्खाण दस विध फल प्ररुप्या महावीर जिणदेव ए, जे करै भविण तप अखंडित तासु सुर पय सेव ए। संवत निधि गुण अश्व शशि वलि पोस सुदि दशमी दिने, पदमरंग वाचक शीस गणिवर रामचन्द्र तपविधि भरणे ॥ ३३ ॥ इति दस पच्चक्खाण वृद्ध स्तवनम् ॥
दश पच्चक्खाण तप विधि |
महावीर स्वामी के उपदेशासार शास्त्र कारोंने जिसतरह अन्यान्य तपस्याओंके करनेका फल समझाया है, उसी तरह दश पच्चक्खाण तपके महात्म्यका फलभी बतलाया है । अतएव धर्मानुरागी श्रावक और श्राविकाओंके लिये यह तप करनाभी लाभदायक है । जो सज्जन “दश पच्च
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