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अभय रत्नसार। ६२७ आयु खिण एकमें, साढपोरसो करै हाण ॥ सु० १५ ॥ पुरिमड्ढ करै नित जीव जे, नरके ते नवि जाय । लाख वरस करमनें दहै, पुरिमड्ढ करम खपाय ॥सु० १६॥ लाख वरस दस नारकी, पामें दुःख अनंत । इतरा करम एकासणें, दूर करै मन खंत ॥ सु. १७॥ एक कोडि वरसां लगै, करम खपावै जीव । नीवीय करतां भावसं, दुरगति हणे सदीव ॥ सु. १८॥ दस कोडि जीव नरकमें, जितरो करै करम दूर । तीतरो एकलठाणही, करै सही चकचूर ॥ सु० १६ ॥ दात करता प्राणियो, सो कोडी परिमाण। इतरा वरस दुरगति तणा, छदै चतुरसुजाण ॥ सु० २० ॥ आंबिलनो फल बहु कह्यो, कोडो एक हजार । करम खपाव इण परै, भाव बिल अधिकार ॥ सु० २१॥ कोडि सहस दस वरसही, सहे दुःख नरक मझार। उपवास करै इक भावसं. तो पामे मुगति मझार ॥सु०॥२२॥॥
ढाल ३॥ केकइ वर लाधो-ए देशी॥ लाख कोडि वरसां लगे, नरके करता रीव रे ।
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