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पूजा - संग्रह |
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भूख तृषा वलि त्रास | रोम २ पीडा करै, परमाह म्मी तास ॥ श्री० ८ || रात दिवस क्षेत्रदेवता, तिल भर नहीं जिहां सुख ॥ किया करम जे भोगवे, पामे जीव बहु दुःख ॥ श्री० ६ ॥ इक दिनरी नवकारसी, जे करै भाव विशुद्ध । सो वरस नरकनो आउखो, दूर करै ज्ञानबुद्धि ॥ श्री ॥ १० ॥ नित्य करें नवकारसी, ते नर नरक न जाय । न रहै पाप वलि पावला, निरमल होवे जी काय ॥ श्री० ११ ॥
ढाल २ ॥ श्रीविमलाचल सिर तिलो―ए चाल । सुण गौतम पोरसी कियां, महा मोटो फल होय । भावसुं जे पोरसी करै, दुरगति छ सोय ॥ सु० १२ ॥ नरक मांहि जे नारकी, वरसें एक हजार । करम खपावै नरकमें, करता बहुत पुकार ॥ सु० १३ ॥ एक दिवसनी पोरसी, जीव करै इकतार । करम हों सहस एकना, निचैसुं गणधार ॥ सु० १४॥ दुरगति मांहे नारकी, दस हजार प्रमाण । नरक
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