________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अभय-रत्नसार।
समण-पूर्वक 'चउक्कसाय.' का 'जय वीयराय.' तक चेत्य-वन्दन करे। फिर 'सर्वमंगल.' कह कर पूर्वोक्त रीतिसे सामायिक करे।
पाक्षिक, चातुर्मासिक और सांवत्सरिक-प्रतिक्रमणकी वीधि * । ___ 'वदित्तु' सूत्र पर्यंत तो दैवसिक-प्रतिक्रमण की विधिकरे। बाद खमासमण दे कर 'देवसिय पडिक्कंता, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पक्खि य मुहपत्ति पडिलेहुँ ?' कहे। बाद गुरु के 'पडिलेहेह' कहने पर 'इच्छ कह कर खमासमण पूर्वक मुहपत्ति पहिलेहन करे और दा वन्दना दे। बाद जब गुरू कहे कि 'पुगणवन्तो 'देव सिय की जगह 'पक्खिय, 'चउमासिय या 'सं वच्छरिय पढ़ना, छींक की जयणा करना, मधुर स्वर से प्रतिक्रमण करना, खाँसना हा तो विवर शुद्ध खाँसना और मण्डल में सावधान रहना,
देवसिक-प्रतिक्रमणमें जहाँ-जहाँ 'देवसियं' बोला जाता है, वहाँ-वहाँ पाक्षिक-प्रतिक्रमणमें 'पक्खिय' चातुर्मासिकमें 'चउमासिय' और सांवत्सरिकमें 'संवच्छरिय' बोलना चाहिये।
For Private And Personal Use Only