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अभय रत्नसार। स्सग्ग आदि करके चार थइ का देव वन्दन करे। इस के पश्चात् एक एक खमासमण देकर श्राचार्य आदि को वन्दन करके 'इच्छकारि समस्त श्रवकोंको वंदू" कहे। फिर घुटने टेक कर सिर नवाँ कर 'सव्वस्स वि देवसिय' इत्यादि कहे। फिर खड़े हो कर 'करेमि भन्ते, इच्छामि ठामि काउसग्गं जो मे देवसिओ०, तस्स उत्तरी, अन्नत्थ कहकर काउस्सग्ग करे। इस में 'आजणा चौपहर दिवस में इत्यादि पाठ का चिन्तन करे। फिर काउस्सग्ग पारके प्रगट लोगस्स पढ़ कर प्रमाजनपूर्वक बैठ कर मुहपत्ति का पडिलेहन करके दो वन्दना दे। फिर 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् दवसियं आलोएमि? कहे। गुरु जब 'आ-. लोएह' कहे तब 'इछ" कह कर 'आलोएमि जो मे दवसियो०' आज णा चौपहर दिवससम्बन्धी० सात लाख, अठारह पापस्थान' कह कर ‘सब्वस्स वि देवसिय, इच्छाकारेण संदिसह भगवन्' तक कहे। जब गुरु
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