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अभयरेतसार ।
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'कहे। गुरुके 'पडिले हेह' कहने पर 'इच्छं' कहकर मुह पत्ति पढ़िलेहे। फिर एमासमण पूर्वक 'इच्छा' कह कर 'सामायिक संदिसाहु, सामायिक ठाउं, इच्छं, इच्छकारि भगवन् पसायकरि दंड उच्चरावो जी, कहे। बाद तीन वार नमुक्कार, तीन वार 'करेमि भन्ते' 'सामाइयं' तथा 'इरियावहियं इत्यादि काउस्सग्ग तथा प्रगट लोगस्स तक सब विधि प्रभातके सामायिककी तरह करे । बाद नीचे बैठ कर मुहपत्तिका पडिलेहन कर दो वन्दना देकर गारा पूर्वक 'इच्छकारि भगवन् पसायकरि पच्च्चखाण कराना जो कहे। फिर गुरुके मुखसे या स्वयं किसी बड़ के मुखसे दिवस चरिमंका पच्चक्खाण करे ।
अगर तिविहाहार उपवास किया हो तो वन्दना न देकर सिर्फ मुहपत्ति पडिलेहन करके पच्चक्खाण कर लेवे और अगर चउव्विहाहार उपवास हो तो मुहपत्ति पडिलेहन भी न करे । बादको एक-एक खमासमण - पूर्वक 'इच्छा' कह
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