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जयतिहुअण स्तोत्र । ३३ जण-आणंद-चंद, भुवण त्तय-दिणयर ॥ जय मइ-मेइणि-वारिवाह, जय-जंतु-पियामह । थंभणय-ट्ठिय पासनाह, नाहत्तण कुण मह ॥८॥ बहुविह-वन्नु अवन्नु सुन्न, वन्निउ छप्पन्निहि। मुक्ख-धम्म-कामत्थ-काम, नर निय-निय-सत्थि हि ॥ जं झायहि बहु दरिसणस्थ, बहु-नामपसिद्धउ। सो जोइय-मण-कमल-भसल, सुहु पास पवद्धउ ॥ ॥ भय-विन्भल रणझणिरदसण, थरहरिय-सरीरय। तरलिय-नयण विसन्न सुन्न, गग्गर-गिर करुणय ॥ तइ सहसत्ति सरंत हुति, नर नासिय-गुरु-दर । मह विझव सज्झसइ पास, भय-पंजर-कंजर ॥१०॥ पई पासि वियसंत-नित्त-पत्तंत-पवित्तियबाहपवाह-पवूढ-रूढ-दुह-दाह सुपुलइय ॥ मन्नइ मन्नु सउन्नु पुन्नु, अप्पाणं सुर-नर। इय तिहुअण-आणंद-चन्द, जय पास-जिणेसर ॥११॥ तुह कल्लाण-महेसु घंट-टंकारय-पिल्लिय ।
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