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अभय रत्नसार। ६०७ यहाँ तक रात्रि-प्रतिक्रमण पूरा हो जाता है। और विशेष स्थिरता हो तो उत्तर दिशाकी तरफ मुख करके सीमन्धर स्वामीका 'कम्मभूमीहिं कम्मभूमीहि,से लेकर 'जय वीयरायय' तक संपूर्ण चैत्य-वन्दन तथा 'अरिहंत चेइयाणं०' कहे और एक नमुक्कारका काउस्सग्ग करके तथा उसको पारके सीमन्धर स्वामीकी एक स्तुति पढ़े । ___अगर इससे भी अधिक स्थिरता हो तो सिद्धाचलजोका चैत्यवन्दन करके प्रतिलेखन करे। यही क्रिया अगर संपक्ष में करनी हो तो दृष्टि-प्रतिलेखन करे और अगर विस्तारसे करनी हो तो खमासमण-पूर्वक 'इच्छा०' कहे और मुहपत्ति-पडिलेहन, अंब-पडिलेहन, स्थापनाचार्यपडिलेहन, उपधि-पडिलेहन तथा पौषधशालाका प्रमार्जन करके कूड़े-कचरेको विधिपूर्वक एकान्त में रख दे और पीछे 'इरियावहियं' पढ़े।
___ सामायिक पारने की विधि। खमासण-पूर्वक मुहपत्ति पडिलेहन करके
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