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५६६.
पूजा - संग्रह |
अगनि समांन ॥ त े नपपद पूजो सदा, निर्मल धरिये ध्यान ॥१॥ काव्यं ॥ कम्मद, सोन्मूलनकुंज रस्स, नमो२ तिव्वतवोवरस्स ॥ अगलद्धीणनीबंधास्स, दुसज्झत्थाय साहणस्स ॥ ७७ इयनवपयसीद्धी लद्धि, वीज्जासमीद्धं पयमीय सरवग्गंह्रीतिरेहसमग्गं ॥ दिसिवइसुरसारं खोणिपीढावयारं, तिजयविजयचक्क' सिद्धचक्क नमा
॥ ७८ ॥ त्रिकालिकपणें कर्मकषाय टाले, निकाचितपणें बाधिया तेह बालै ॥ कह्यो तेह तप बाह्य अभ्यंतर दुभेदे, क्षमायुक्ति निर्हेत दुर्ध्यान छेदे ॥ ७६ ॥ होइ जास महिमाथको लब्धि सिद्धि, अवांछपणे कर्म आवरण शुद्धि ॥ तपो तेह तप जे महानंद हेतें, होइ सिद्ध सीमंतनी जिम संकेते ॥ ८० ॥ इम नव पद ध्यावै परम आनंद पावै, नवभव शिव जावै देव नर भवज पावै ॥ ज्ञानविमल गुण गावै सिद्धचक्र प्रभावै, सवि दुरित समावै विश्व जयकार पावै ॥ ८१ ॥ ढाल || इच्छारोधन तप नमो, बाह्य अ
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