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पूजा-संग्रह |
यस्स, नमो२ संजमवीरिअस्स ॥ सब्भावणसंग
निव्वाणदाणाइ समुज्जयस्स ॥
विवहिस्स, वलिज्ञानफलतेधरिये सुरंगे, निरासंसताद्वाररोधे प्रसंग ॥ भवांभोधिसंतारणेयानतुल्यं, धरु तेहचारित्रप्राप्तमूल्यं ॥ ६८ ॥ होईंजासमहिमाथकोरंकराजा, वलिद्वादशांगी भरणी होइताजा ॥ वलि - पापरूपोपनिप्पापथायै, थई सिद्धते कर्मनेंपार
जायै ॥ ६६ ॥
॥ चाल ॥ चारित्रगुण वलि२ नमो, तत्वरमजसु मूलो जी ॥ पररमणीयपणो टलै, सकल सिद्धि अनुकूलो जी ॥ उल्लालो || प्रतिकूल आश्रव त्याग संजम तत्व थिरता दममयी, शुचिपरम खंति मुनींद संपद पंच संवर उपचयी ॥ सामायिकादिक भेद धरमैं यथाख्यातै पूर्णता, अकषाय अकुलस अमल उज्वल काम कसमल चूर्णता ॥ ७० ॥
|| ढाल || देशविरत ने सर्वविरत जे, ग्रही यतिने अभिराम ॥ ते चारित्र जगत जयवंतो,
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