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पूजा-संग्रह |
धार दिग्दतकल्पा, जगत्ते चिरंजीवज्यो शुद्ध
जल्पा ॥ ३ ॥
ढाल ॥ आचारज मुनिपति गणी, गुणछत्तीसेधामो जी ॥ चिदानंद रसस्वादता, परभावे निक्कामो जी ॥ उल्लालो || निक्काम निरमल शुद्ध चिदघन, साध्य निज निरधारथी । वरज्ञान दरसन चरण बीरज, साधना व्यापारथी | भवि जोवबोधक तत्वशोधक, सयलगुण संपत्तिधरा ॥ संवर समाधी गत ऊपाधी, दुविधत पगुण आद
रा ।। २५ ।।
ढाल || पांच आचार जे सुधा पाले, मारग भाखे साचौ ॥ ते आचारज नमिये तेहसुं, प्रेम करीने याचो रे ॥ भ० ॥ २६ ॥ सि० ॥ वर छत्तीसगुण करि शोभे, युगप्रधान जगबोहै ॥ जगमोहे न रहे खिण कोहे, सूरि नमूं ते जोहे रे भ० ॥२७॥ सि०॥ नित अप्रमत्त धरम उब एसे. नहि विकथा न कषाय || जेहने ते आचारज नमिये, अकलूस अमल माय रे ॥ भ० ॥ २८ ॥
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