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अभय-रलसार।
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अथ पुष्प पूजा ॥ दोहा ॥शतपत्री वर मोगरा, चम्पक जाइ गुलाब । केतकी दमणो बोलसिरि, पूजो जिन भरि छाब ॥१॥ ढाल ॥ अमल अखण्डित विकसित सुभ सुमनी घन जाति, लाखीनो टोडर ठवो आंगी रचो बहुभांति । गुण कुसुमें निज आतम मण्डित करवा भव्य, गुणरागी जड़त्यागी पुष्प चढ़ावो नव्य ॥२॥चाल ॥ जगधणी प्रजतां विविध फूलै, सुरवरा ते गिणे क्षण अमूले। खन्ति धर मानवा जिनपद पूज, तसुतणा पाप संताप धूजै ॥ ३ श्लोकः॥ विकचनिर्मलशुद्धमनोरमैः विशदचेतनभावसमुदभवैः । सुपरिणामप्रसूनघनैर्नवैः, परमतत्वमयं हि यजाम्यहं ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं परमपरमात्मने पुष्पं यजामहे स्वाहा ॥३ इति पुष्पपूजा ॥ पुष्प चढ़ावे ॥
अथ धूप पूजा ॥ ॥३॥ कृष्णागर मृगमद तगर, अम्बर तुरक लोबान । मेल सुगन्ध घनसार घन, करो
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