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अभय रत्नसार। ५६७ ( कंधोंमें टीकी ) ॥४॥ सिर पूजा जिनराजकी, लोक शिरोमणि भाव। चउगति गमन मिटायके, पंचम गति सम भाव ॥ ( मस्तकमें टीको ) ५॥ लिलवट पूजा सार है, तिलक विधि विश्राम। वदन कमल वाणीसुने, पहुंच निज गुण धाम ॥ ( ललाटमें टीकी)॥६॥ कंठ पूजा है सातमी, वचनातिशय वृद । सप्त भेद पंयचिश श्रुत, अनुभव रस नो कंद ॥ ( कंठमें टीकी ) ॥७॥ हृदय कमलनी पू. जना, सदा बसो चितमाह । गुण विवेक जागे सदा, ज्ञान कला घट छाय (हृदयमें टीकी) ॥८॥ नाभी मंडल पूजके, षोड़श दलको भाव । मन मधुकर मोही रह्यो, आनंद घन हरषाय (नाभीमें टीकी)॥६॥ इति ॥
पुनः॥ दुहा ॥ जल भरि संपुटमां, युगलिक नर पूजंत। ऋषभ चरण अंगूठवे,दायक भवजल अंत ॥ १॥ जानु बले काउसग रह्या, विचस्या देश विदेश । खड़ा २ केवल लह्या, पूजा जानु
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