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अभय रत्नसार। ५६५ तुम जीवो॥३॥ श्लोक ॥ विमलकेवलभासनभास्कर, जगति जंतुमहोदयकारणं । जिनवरं बहुमानजलौघतः, शुचिमनः स्नपयामि विशुद्धये ॥१॥ओं ह्रीं परमपरमात्मने अनंतानंतज्ञानशक्तये जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमज्जिनेन्द्राय जलं यजामहे स्वाहा ॥ १॥ इति जल पूजा ॥ यह कहकर जलसे न्हवण कराना ॥
चंदन पूजा । दुहा ॥ बावना चन्दन कुम कुमा। मृगमद ने धनसार ॥ जिन तनु लेपै तसु टले । माह सन्ताप विकार ॥ १॥ ढाल ॥ सकल संताप निवारण तारण सह भविचित्त। परम अनोहा अरिहा तनु चरचो भविनित्त ॥ निज रूपें उपयोगी धारो जिन गुणगेह। भाव चंदन सुह भावथी टाले दुरित अछेह ॥ २॥ चाल ॥ जिन तनु चरचतां सकल नाकी। कहै कुग्रह ऊष्णता आज थाकी ॥ सफल अनिमेषता आजम्हाँकी। भव्यता अम्ह तणी आज पाको ॥३॥ श्लोक ॥
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