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सज्झाय-संग्रह। हेठ ॥ धन संची संच कांइ करो, करवो देवनी वेठ॥ ४॥ भू० ॥ लखपति छत्रपती सब गए, गए लाखो के लाख ॥ गरब करी गोखै बैठता, भए जल बल राख ॥ ५ ॥सू०॥ भवसायरजल दुख भरयो, तिरवो छ रे जेह ॥ बीचमें बीह सबलो अछ, करमें वाय ने मेह ॥ ६ ॥ भू० ॥ उलट नही मोरग चालवो, जोयवो पहिले रे पार ॥ आगल नही हटवांणियो, संबल लेज्यो रे लार ॥७॥ भू मूरख कहे धन माहरो, धन केहनो हतो न थाय ॥ वस्त्र विना जाय पोढवो, लखपति लाकड़ माय ॥८॥ भू०॥मह मंद कहै वस्त वोरीय, जे कुछ आवे रे साथ ॥ आपणो लाभ उवारिय, लेखो साहिब हाथ ॥ भू० ॥६॥
॥बाहूबलजीकी सज्झाय ॥ राजतणा अति लोभिया, भरत बाहूबल झझे रे॥ मूठ उपाड़ी मारिवा, बाहूबल प्रतिबझे रे॥१॥ वीरा म्हारा गजथको ऊतरो, ब्राह्मी
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