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अभय रत्नसार। ४६३ विख्यात ॥ शिखर शिरोमणि सहस फण, जग जीवन जगतात ॥१॥ नवमी दाल----अादर जीव क्षमागुण आदर-ए देशी ॥
जय २ परम पुरुष पुरुषोत्तम, पारस पारसनाथ जी ॥ सांवरिया साहिब जगनायक, नाम अनेक विख्यात जी ॥ १॥ जय २ सिखर समेत शिरोमणि, श्रीसाँवरिया पास जी ॥ ध्यावे सेवे जे नर तेहनी, पूरे वंछित आस जी ॥२॥ज०॥ काशी देस वणारसी नगरी, श्रीअश्वसेन नरिंद जी, वामा माता जग विख्याता, तेहना सुत सुखकंद जी ॥३॥ जय० ॥ पन्नग लंछन नील वरण छवि, देहि शुभ नव हाथ जो॥ आयू इकसो वरस प्रमाणे, गणधर दस प्रभु साथ जी ॥४॥ जय० ॥ सोल सहस मुनिवर अरु श्रमणी, कही अडतीस हजार जी॥ भूमंडल विचरे भवि जनकू, बोध बीज दातार जी॥५॥ जय० ॥ चोसठ सहस लाख इक श्रावक, गुण
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