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अभय-रत्नसार ।
सम्मेद शिखरजीका रास |
दुहा || वादी वीस जिनेसरू, रचस्युं रास रसाल । तीरथ शिखरसमेतनी, महिमा बड़ी विशाल ॥ १ ॥ मोटो तीरथ महियले, प्रगट्यो शिखरसमेत । कोड़ाकोड़ी मुनिवरू, सिद्ध गए इह खेत ॥ २ ॥ तीरथ शिखरसमेत ए, फरस्या पाप पुलाय । भविजन भेटो भावसु, ज्यु सुख संपद थाय || ३ || महिमा शिखरसमेतनी, कहि नसके कवि कोय । गुण अनंत भगवंतना, तिम ए तीरथ होय ॥ ४ ॥
पहली ढाल चोपाई की।
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गिरवर शिखर समो नहि कोय, एहनी महिमा सब जग होय । वीस जिनेसर मुगते गया, मुनिजन ध्यान धरीने रह्या ॥ १ ॥ प्रथम अयोध्यानगरी भली, तिहां जितशत्रु नरेसर वली | विजयाराणीने सुत जांण, अजितकुमर
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