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(२) इस पुस्तकके प्रकाशन करवानेके सम्बन्धमें शासन रक्षक, गांभिर्यादि गुण-विभूषित, शास्त्र-विशारत, व्याख्यान वाचस्पति, पूज्यपाद, प्रातः स्मरणीय, जंगम-युगप्रधान भट्टारक जैनाचार्य श्री १००८ श्रीजिनचारीत्रसूरीश्वरजीने हमे सदुपदेश देकर इसको एक हजार प्रतियोंके छपवानेका निश्चय करवाया था। परन्तु कुछ समयके बाद शासन-मण्डन सकल शास्त्र-सम्पन्न, चारित्र-चूड़ामणि परमपूज्य जैनाचार्य श्री १००८ श्रीजिनकृपाचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजको विशेष प्रेरणा होनेपर दो हजार प्रतियोंके छपवानेका निश्चय हुआ। और तदनुसार हमने दो ही हजार प्रतिये छपवाकर प्रकाशित करवायो हैं। ___ इस पुस्तकके छपवाकर प्रकाशित करवानेका सारा श्रेय उक्त दोनों गुरुवर्योंको ही हैं। क्योंकि उन्हींकी परम कृपा और विशेष प्रेरणासे यह पुस्तक आप लोगोंकी सेवामें रखी गयो है । आशा है, इसे सप्रेम अपनाकर उक्त दोनों गुरुवर्योंके सदुपदेशको तथा हमारे परिश्रमको सफल करेंगे। यदि इस पुस्तकका हाथों-हाथ प्रचार हो गया तो थोड़ेही समयमें दूसरी कोई नयो पुस्तक तैयार करवाकर आप सजनोंकी सेवामें रखेंगे। यही हमारा अन्तिम निवेदन है ।
प्रस्तुत पुस्तकका नामकरण हमारे स्वर्गोंय पुत्र श्रीयुत अभयराजके स्मरणार्थ उसीके नामपर इसका नाम "अभयरत्नसार" रखा गया है। अस्तु।
निवेदक-- शंकरदान नाहटा।
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