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प्रकाशकीय-निवेदन।
साधर्मिक बन्धुओंसे सप्रेम निवेदन है, कि प्रस्तुत पुस्तकके सम्बन्धमें हमारी यह अभिलाशा थी कि, इसका मूल्य न रखकर बिना मूल्य ही प्रचार करवाया जाय । तदनुसार इस पुस्तकके पूर्व-वक्तव्यमें तथा बीकानेर महावीर-मण्डलकी नियमावलोमें विज्ञापन देकर समस्त जैन बन्धुओंको भेंट देनेका उल्लेख कर दिया था। परन्तु बादमें कई सज्जनोंके यह कहनेपर कि "सब किसीको मुफ्त दे देनेसे कईयोंके पास दो-दो-तीन-तीन प्रतिय चली जायगी और कई भाईयोंही वंचित रह जायेंगे । तथा:मुफ्तकी पुस्तक जानकर कई भाई उसका ठीक तरह उपयोग भी न कर सकेंगे। अतः इसका लागत दाम रख दीजिये या उससे कम करके थोड़ा दाम रख दीजिये; पर दाम जरूर रखिये।" यह समझ कर हमने अब यह निश्चय किया है, कि यति साधु-साध्वी तथा लायब्ररी-पुस्तकालयको भेट दी जाय
और साधर्मिक भाई-बहनोंसे लागत मूल्यसे भी कम दाम लेकर दी जाय। ___ प्रस्तुत पुस्तककी २००० प्रतियोंपर छपाई, शोधाई, बधाई
और कागज़ आदिका सारा व्यय २५००) हुआ है। तदनुसार प्रति पुस्तकका मूल्य १सवा रुपैया पड़ता है। परन्तु हर एक साधर्मिक भाई लाभ लेसके इस खयालसे पूरे दाम न रखकर केवल ) बारह आने ही रखे हैं। और इन पुस्तकोंके जो दाम आयेंगे उन दामोंमें फिर कोई नयी पुस्तक प्रकाशित करवा कर आप लोगोंकी सेवामें उपस्थित करेंगे। आशा है, प्रेमी जनोंको हमारी यह व्यवस्था प्रिय प्रतीत होगी।
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