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४६८ श्रीशत्रुजयका रास। बारमो उद्धारोजो ॥ से०॥१४॥ मम्माणो पाखाणनो, प्रतिमा सुन्दर सरूपो जी॥ श्रोशत्रुजयनो संघ करी, थापी सकल सरूपोजी॥ से० ॥१५ ॥ अटोतर सो वरसां गया, विक्रम नपथी जिवारो जी ॥ पोरवाड जावड करावियो, ए तेरतेरमो उद्धारो जी ॥ १६ ॥ से०॥ संवत बार तिडोतरे, श्रीमाली सुविचारो जी, वाहडदे मु. हते करावियो, ए चवदमो उद्धारोजी ॥ १७ ॥ से०॥ संवत तेरे इकोतरे, देसलहर अधिकारो जी ॥ समरेसाह करावियो, ए पनरमो उद्धारो जी॥ १८ ॥ से०॥ संवत पनर सत्यासिये, वैसाख वदि शभ वारो जी ॥ करमे दोसी करावियो, ए सोलमो उद्धारो जी ॥ १६ ॥से० ॥ संप्रति काले सोलमो, ए वरते छे उद्धारो जी॥ नित नित कीजे वन्दना, पांमीजे भवपारो जी॥ २०॥से०॥
॥हा॥ वलि शत्रुजय महातम कहूं, सांभलो
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