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अभय रत्नसार । ज्ञान, दर्शन, चारित्र, पाटी, पोथी, ठवणी, कवली, नवकरवाली, देव-गुरु-धर्मकी आशातना की हो; पन्नरह कर्मादानोंकी आसेवना की हो; राज-कथा, देश-कथा, स्त्री-कथा, भक्तकथा की हो; और जो कोई पर निंदादि पाप किया हो, कराया हो, करते हुएका अनुमोदन किया हो, सो सब मन, वचन, काया करके, रात्रि-अतिचार आलोयण करके, पडिक्कमणमें आलोउं, तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥३१॥ ३२-वंदित्तु-श्रावकका प्रतिक्रमण सूत्र।
बंदित्तु सव्वसिद्धे, धम्मायरिए अ सब साहू अ। इच्छामि पडिक्कमिडं, सावगधम्माइआरस्स ॥ १॥ जो मे वयाइआरो,नाणे तह दसणे चरित्ते अ। सुहुमो अ बायरो वा, तं निंदे तं च गरिहामि ॥२॥ दुविहे परिग्गहम्मि, सावज्जे बहुविहे अ आरंभे । कारावणे अकरणे, पडिक्कमे देसि सव्वं ॥३॥ जं बद्धमिदिएहिं,
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