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अभय रत्नसार ।
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मनी ए ॥ १३ ॥ शीलवती नामें शीलवत धारिणी, त्रिविधे तेहने वंदीये ए ॥ नाम जपतां पांतिक जाए, दरसन दुरित निकंदि ए ॥१४॥ निषधानगरी नल नरपतनी, दवदंती तसु गेहनी ए ॥ संकट पड़ियां शीलज राख्यो, त्रिभुवन कीर्त्ति जेहनी ए ॥१५॥ अनंग अजीता जगजन जीता, पुष्पचूला ने प्रभावती ए ॥ विश्व विख्याता कामित दाता, सो
मी सती पद्मावती ए ॥ १६ ॥ वीरे दाखी शास्त्र छे साखी, उदयरत्न भाषे मुदा ए ॥ प्रह ऊठीने जे नर भणसे, ते लहिस्ये सुख-संपदा ए ॥ १७ ॥ ॥ श्रावक - करणी की सझाय ॥
॥ चोपाइ ॥ श्रावक तूं ऊठे परभात, चार घड़ी ले पाछली रात ॥ मनमां समरे श्री नवकार, जेम पामे भव सायर पार ॥ १ ॥ कवण देव कवण गुरुधर्म, कवण मारुं छे कुलकर्म ॥ कवण अमा छ व्यवसाय, एवं चिंतवजे मन मांय ॥ २ ॥ सामायिक लेजे मन शुद्ध, धर्मनी हैंडे धरजे
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