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४१४ स्तवन-संग्रह। प्या० ॥ अश्वसेन वामाजीके नंदन, देख्यां विल हरखाय ॥ प्या० ॥१॥ तीन लोकमें महिमा जाकी, सुर नर मुनि गुण गाय ॥ प्या० ॥ नील वरण मनमोहन निरख्यो, नाथ गोडीचा राय॥ प्या०॥२॥ सुगण सेवगकी येही अरज हे, भवदुख ताप मिटाय ॥ प्या०॥३॥
॥ सातवां पद ॥ ॥ श्रीचिंतामण पासजी,अजब सुरंग अनूप॥ सवाइ प्रभूजी, थांरी सांवली सूरत म्हानु प्यारी लागे राज ॥ वामाजी नंदन वांदवा, चितड़ामें लागी छै चंप ॥ सवाइ प्रभूजी ॥ १॥ अणियाली प्रभू आंखडी, वदन सरोज विकास ॥ स० ॥ थां० ॥ नयण सलूणे जी निरखतां, ऊपज अधि क उल्हास ॥ स० ॥ थां०॥२॥ अंगज नृप अ. श्वसेननो, करुणा निधि करतार ॥ स. थां ।। पुण्य संयोगे जी पांमीयो, दिल रंजन दीदार ॥ स० थां० ॥३॥ तो दिन सफलो जांणिय, सो
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