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स्तवन- संग्रह |
ठग कहूं तो ठग तो न देखूं, साहूकार पिण नांही ॥ सर्वमांह ने सहुथी अलगूं, ए रिज मनमांही हो ॥ कुं० म० ॥ ५ ॥ जे जे कहूं ते कान न धारे, आप मते रहे कालो | सुरनर पंडित जन समझावै, समझे न माहारो सालो हो ॥ कुं० म० ॥ ६ ॥ में जाएयु ए लिंग नपुंसक, सकल मरदने ठेले ॥ बीजो बातें समरथ छै नर, एहने कोई न ले हो ॥ कुं० ॥ म० ॥ ७ ॥ मन साध्यं ति सगलूं साध्यं, एह वात नही खोटी ॥ एम कहे साध्यं ते नवि मानं, ए कहि वात छे मोटी हो ॥ कुं० ॥ म० ॥ ८ ॥ मनहुं दुराराध्य तें वस आणं, ते आगमथी मतिं ॥ आनंदघन प्रभु माहरो आणो, तो साचूं कर जाणुं हो | कुं० ॥ म० ॥६॥
॥ प्रतिक्रमण में कहने योग्य पार्श्वनाथजीके छोटे स्तवन ||
|| पहला पढ़ ||
॥ श्रीसंखेसर पास जिनेसर भेटिये, भवना
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