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अभय रत्नसार ।
३.२५
सहु करे रे, प्रीत सगाई न कोय ॥ प्रीत सगाई रे निरुपाधिक कही रे, सोपाधिक धन खोय ॥ ऋ० ॥ २ ॥ कोइ कंत कारण काष्ट भक्षण करे रे, मिलसुं कंतने धाय ॥ ए मेलो नवि कहिये संभवे रे. मेलो ठाम न ठांय ॥ ऋ० ॥ ३ ॥ कोइ पति रंजन प्रति घणो तप तपै रे, पति रंजन तन ताप ॥ ए पति रंजन में नवि चित धरयु रे, रंजन धातु मिलाप ॥ ऋ० ॥ ४ ॥ कोइ कहे लीलारे अलख लख तीरे, लख पूरै मन आस ॥ दोष रहितने लीला नवि घटे रे, लीला दोष विलास ॥ ऋ० ॥ ५ ॥ चित्त प्रसन्ने रे पूजन फल कोरे, पूज अखंडित एह ॥ कपट रहित थई आतम अरपणारे, आनंदघन पद रेह ॥ ऋ० ॥६॥ ॥ श्री अजितनाथ स्वामीका स्तवन ॥ मारुं मन मोहयुं रे श्री विमलाचले रे | ए चाल || पंथडो निहालं रे बीजा जिनतणोरे, अजि त २ गुण धाम ॥ जे तें जीत्यारे तेणे हुं जीतियो
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