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३२४ स्तवन-संग्रह। कृ०॥ २६ ॥ मर्म एह जिनधमनो जी, पाप आलोयां जाय ॥ मनसुं मिच्छामिदुक्कडं जी, देतां दूर पुलाय ॥ कृ० ॥ ३० ॥ तूं गति तूं मति तूं धणी जी, तूं साहिब तूं देव ॥ आण धरु सिर ताहरीजी, भव २ ताहरी सेव ॥ कु० ॥ ३१ ॥ ॥ कलश ॥ इम चढिय सेत्रंजा चरण भेट्या नाभिनंदन जिन तणा, करजोड़ि आदिजिनंद आगे पाप आलायां आपणां ॥ श्रीपूज्य जिनचंदसूरि सद्गुरु प्रथम शिष्य सुजस घणे, गणि सकलचंद सुशिष्य वाचक समथसुन्दर गणि भणें ॥ ३२ ॥
आनधनजी कृत स्तवन
॥ श्री ऋषभदेव स्वामीका स्तवन ॥ ॥ करम परीक्षा करण कुमर चल्यो रे ॥ ए चाल ||
ऋषभ जिनेसर प्रीतम माहरो रे, उर न चा हरे कंत ॥ राज्यो साहिब संग न पहिरे रे, भांगे सादि अनंत ॥ ३० ॥१॥प्रीत सगाइरे जगमां
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