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३६० स्तवन-संग्रह । जो,वाण्यो रे नवि जायो कलियुग वायरो रे लो, हारे मोरा लायक नायक भगत वच्छल भगवंत जो, वारू रे गुण केरा साहिब सायरू रे लो॥४ हारे प्रभु लागी मुझने ताहरी माया जोर जो, अलगा रे रह्यांथी होइ उभोगलो रे लो॥ हारे कुण जाणे अंतर गतिनी विण माहाराज जो, हेजे रे हसी बोलो छंडी आमलो रे लो॥ ५॥ हारे तारे मुखने मटके अटक्यूं माहरो मन्न जो, आंखडली अणियाली कामणगारी!रे लो॥ हारे मारे नहणा लंपट जोवे खिण २ तुझ जो, राती रे प्रभु रागे न रहे वारीयां रे लो॥६॥ हारे प्रभु अलगा ते पिण जाणज्यो करीने हजर जो, ताहरी रै बलिहारी हूं जाउं वारणे रे लो॥ हारे कवि रूप विबुधनो मोहन करै अरदास जो, गिरुत्रा थइ मन आंणो ऊलट अति घणो रे लो॥
॥राणपुराका स्तवन । राणपुरै रलियामणो रे लाल, श्रीआदीसर
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